पूर्वजों को जानने का अधिकार (एयूएम: पैतृक एकीकृत मेटार्र्व) अधिधनयम, 2023
जहााँ र्ुमधत तहााँ र्म्पधत नाना ।
जहााँ कुमधत तहााँ धिपधत धनदाना ।।
भारत में विविधता में एकता, समान पिवजों के ि ू ंशज होने का गौरि, िसधैि क ु ुटुंबकम से राष्ट्रीय समवत ु ,
िंशािली,पैतक ज्ञान ृ , पारंपररक सांस्कृवतक विरासत और भारतीय ज्ञान प्रथाओ को स्िीकार करने ं , संरवित
करने एिंबढािा देने के वलए एक विधेयक।
प्रस्तार्ना:
जबवक, भारत गणराज्य पिवजों की ू सांस्कृवतक विरासत और पैतक ज्ञान की सम ृ द्ध ृ परंपरा को मान्यता देता
है वजसने सहस्रावददयों से हमारे राष्ट्र को आकार वदया है;
और जबवक, वशिा, स्िास््य देखभाल, विज्ञान, निाचार, शासन और नेतत्ि सवहत आध ृ वनक जीिन के ु
विवभन्न पहलओु में पैत ं क ज्ञान को स्िीकार करना ृ , संरवित करना और बढािा देना आिश्यक है;
और जबवक, पैतक एकीक ृ ृत मेटािसव (एन्सेस्रल यवनफाइ ू ग मेटािसव (एय ं एम) ू ) की कल्पना एक विवजटल
सोशल मीविया प्लेटफॉमव के रूप में की गई है जो समकालीन समाज में पिवजों की जानकारी, ि ू ंशािली,
पैतक ज्ञान की खोज और एकीकरण की स ृ ुविधा के वलए प्रौद्योवगकी का उपयोग करता है;
और जबवक, पैतक एकीक ृ ृत मेटािसव (एयएम) ू को विकवसत करके और अपने पिवजों ू की जानकारी,
िंशािली, पैतक ज्ञान ृ , गौरिशाली इवतहास एिंऔर सांस्कृवतक विरासत को जानने के अवधकार को बढािा
देकर भारत के लोगों की समद्ध सा ृ ंस्कृवतक विरासत और पैतक ज्ञान को पहचान ृ कर सबके साथ, सबके
विश्वास, सबके प्रयास से एयएम सोशल मीविया प्लेटफॉमव ू के माध्यम से पारंपररक ज्ञान विरासत को ितवमान
काल खंि से साझा करेगा;
इसवलए, अब इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के वलए “पिवजों को जानने का अवधकार (एय ू एम: पैत ू क एकीक ृ ृत
मेटािसव) अवधवनयम” लागू करना समीचीन है।
अध्याय I – प्रारंधिक
िारा 1 – र्ंधिप्त शीर्वक:
इस अवधवनयम को “पूिवजों को जानने का अवधकार (एयएम: पैत ू क एकीक ृ ृत मेटािसव) अवधवनयम, 2023”
के रूप में उद्धत वकया जा सकता है। ृ
िारा 2 – पररिार्ाएाँ:
(ए) “एयएम” पैत ू क एकीक ृ ृत मेटािसव को संदवभवत करता है, जो इस अवधवनयम में िवणवत एक विवजटल
सोशल मीविया प्लेटफॉमव है।
(बी) “पैतक ज्ञान” भारत के सा ृ ंस्कृवतक संदभव में पीवढयों से चले आ रहे ज्ञान, प्रथाओ और पर ं ंपराओ को ं
शावमल करता है।
(सी) “संरिण” का अथव भविष्ट्य की पीवढयों के वलए सांस्कृवतक विरासत, प्रथाओ और ं पिवजों के ू ज्ञान की
सरिा ु , संरिण और संिधवन के प्रयास हैं।
(िी) “प्रचार” उन गवतविवधयों और पहलों को दशावता है वजनका उद्देश्य जागरूकता पैदा करना और
समकालीन जीिन में पैतक ज्ञान को शावमल करने को बढािा देना है। ृ
(ई) “राष्ट्रीय पैतक ृ प्रज्ञान आयोग” इस अवधवनयम के तहत स्थावपत वनकाय को संदवभवत करता है, जो
एयएम और स ू ंबंवधत मामलों की वनधावरण, प्रबंधन, और संचालन के वलए वजम्मेदार है।
अध्याय II – पैतृक एकीकृत मेटार्र्व (एयूएम)
िारा 3 – एयूएम की स्थापना:
(ए) भारत सरकार पैतक ज्ञान ृ , विरासत और प्रथाओ की खोज ं , संरिण और प्रचार के वलए समवपवत एक
विवजटल सोशल मीविया प्लेटफॉमव एन्सेस्रल यवनफाइ ू ग मेटािसव (एय ं एम) की स्थापना करेगी। ू
िारा 4 – एयूएम के उद्देश्य:
एयएम के उद्देश्यों में वनम्नवलवखत शावमल होंगे ू , लेवकन इन्हीं तक सीवमत नहीं हैं:
(ए) 5000 िर्व पिव तक ू की पिवजों का गौरिशाली इवतहास, 25 पीवियो का ि ू ंशािली, पूिवजों के नाम,
संबंध, पैतक ज्ञान ृ , परंपराओ और प्रथाओ ं का एक विवजटल भ ं ंिार प्रदान करना।
(बी) पैतक ज्ञान में रुवच रखने िाले विद्वानों ृ , िंशािली लेखकों, अभ्यासकतावओ और नागररकों के बीच ं
अनसुंधान और सहयोग की सविधा प्रदान करना। ु
(सी) आधवनक स्िास््य देखभाल ु , िास्तकला ु , लोककला, लोकगीत, लोकपरंपरा, शासन और नेतत्ि में ृ
पैतक ज्ञान के एकीकरण को बढािा देना। ृ
(िी) एक-भारत-श्रेष्ठ-भारत का विवजटलसोशल प्लेटफॉमव और भारतीय ज्ञान परंपरा के माध्यम से
सांस्कृवतक आदान-प्रदान और समझ को बढािा देना।
(ई) आनिा ु ंवशक विकार / बीमाररयों के वनयंत्रण में पैतक स्िास््य ृ -वचवकत्सा प्रथाओंएिं आनिा ु ंवशक
अध्ययन के माध्यम से स्िास्थ कल्याण और पाररिाररक खशहाली ु को बढािा देना ।
(एफ) पिवजों के आजीविका, स्िािल ू ंबन एिं परंपरागत कायों का अध्ययन, विश्लेर्ण एिं निाचार के
माध्यम से रोजगार को बढािा देना।
(जी) पिवजों के पार ू ंपररक भोजन पद्धवत, मोटा अनाज के उपयोग, आयर् सलाद का उपयोग एि ु ंपोर्ण
पद्धवत का अध्ययन, विश्लेर्ण एिं निाचार के माध्यम से आहार से स्िस्थ जीिन को बढािा देना ।
(एच) पिवजों के ू पारंपररक कृवर् पद्धवत का अध्ययन, विश्लेर्ण एिं निाचार के माध्यम से पयाविरण एिं
मानि जीिन के अनकुूल खेती को बढािा देना।
(आई) िसधैि क ु ुटुंबकम की भारतीय परंपरा को आगे बढाने के वलए पिवजों की क ू ुटुंब प्रबोधन, माता-
वपता, ररश्तेदार एिं संयक्त पररिार को बढािा देना । ु
(जे) पिवजों के पार ू ंपररक प्रकृवत संरिण, धरती संरिण, जल संरिण, िि स ृ ंरिण शैली का अध्ययन,
विश्लेर्ण एिं आत्मसात करने को बढािा देना ।
(के ) पिवजों के लोकविज्ञान, ू परंपरागत ज्योवतर् विज्ञानका अध्ययन, विश्लेर्ण कर मानि कल्याण के वलए
उपयोग करना ।
(एल) िैवदक काल, वसंध घाटी सभ्यता सवहत भारत के प ु िवजों, साम्राज्य के गौरिशाली इवतहास लेखन, ू
दस्तािेजीकरण, चलवचत्रण, प्रमाणीकरण के साथ विवजटल एयएम प्लेटफॉमव पर भारत के नागररकों के ू
वलए उपलदध कराना ।
(एम) पैतक वसद्धा ृ ंतों एिं पूिवजों के जीिन मल्यों का अिलोकन, शोध, विमशव एि ू ं परामशव हेत विवजटल ु
एयएम प्लेटफॉमव पर भारत के नागररकों के वलए उपलदध कराना । ू
(एन) विदेशी आक्रान्ताओ के आक्रमण काल ख ं ंि में भारत के पररिारजनों पर हुए अत्याचार, भयादोहन
को वचवित कर मेटािसव में दशावना, वजससे ितवमान पीढी पिव के कालख ू ंिों में हुए रिा वनकाए की कवमयों
को पहचान कर पनः ऐसी प ु नराि ु वि न हो को समझ कराना । ृ
(ओ) भारत के नागररकों के द्वारा अपने पूिवजों को अपने पाररिाररक उत्सि में आमंवत्रत करने तथा अपने
25 पीढी तक के पिवजों का वचत्रण एि ू ं चलवचत्रण बनाने एिं अत्याधवनक ए. आई. तकनीकी से अपने ु
पिवजों और पररिार जनों से ज ू ड़ाि कराना । ु
अध्याय III – पूर्वजों को जानने का अधिकार
िारा 5 – एयूएम का पररचय: पैतृक एकीकृत मेटार्र्व (एयूएम-एआई प्लेटफॉमव):
एयएम प्लेटफॉमव को एआई ू -आधाररत विवजटल प्लेटफॉमव के रूप में पेश वकया गया है, वजसे पैतक विरासत ृ
की खोज को सविधाजनक बनाने के वलए विजाइन वकया ु जाना प्रस्तावित है।
िारा 6 – अधनर्ायव र्दस्यता:
सभी भारतीय नागररकों को ‘एयएमू -एआई प्लेटफॉमव’ का सदस्य बनना आिश्यक होगा, और उनकी
पहचान उनके आधार नंबर से जड़ी होगी ु , वजससे सरवित पह ु ुच स ं वनवित होगी। ु
िारा 7 – डेटा ररकॉधडिंग:
प्लेटफॉमव पर पिवजों और उनके ि ू ंशजों के नाम सवहत वपछले 25 पीवियो के अवधकृत पिवजों की जानकारी ू
दजव की जाएगी।
पररिारजनों, ग्राम-नगर के िररष्ठजनों के साथ-साथ समवपवत िंशािली लेखक इस िेटा को सािधानीपूिवक
दजव करेंगे।
िारा 8 – पंधडत र्ूचना का र्मार्ेश:
हररद्वार, प्रयागराज, गया और कोणाकव सवहत विवभन्न स्थानों पर तपवण और वपंि पजा करने िाले प ू ंवितों
की जानकारी भी मंच में शावमल की जाएगी।
िारा 9 – योगदान के धलए प्रोत्र्ाहन:
पैतक िेटा रखने िाले व्यवक्तयों ृ , चाहे िे पररिार के बजु गव हों ु , गांि या शहर के बुजगव हों ु , उन्हें मंच पर अपने
ज्ञान का योगदान करने के वलए प्रोत्सावहत वकया जाएगा। विरासत योगदानकतावओ को सम्मावनत करने के ं
वलए परस्कार ु प्रदान करनेको प्रेररत की जाएगी ।
िारा 10 – र्ंश का पता लगाना:
‘एयएमू -एआई-टेक्नोलॉजी’ विवभन्न स्रोतों से िेटा को आपस में जोड़ेगी, वजससे सभी भारतीय नागररकों
को 25पीवढयों से चली आ रही अपनी िंशािली का पता लगाने में मदद वमलेगी।
िारा 11 – धर्रार्त और स्र्ास््य:
इस पहल का उद्देश्य व्यवक्तयों को अपने पिवजों के पार ू ंपररक व्यिसायों और जीवित रहने के साधनों के बारे
में जानने में सिम बनाना है, वजससे उनकी विरासत के साथ गहरा संबंध विकवसत हो सके ।
यह िंशानगत स्िास््य समस्याओ ु की पहचान करने और उनका समाधान करने में भी मदद करेगा ं , वजससे
अंततः जीिन की गणििा में स ु धार होगा। ु
िारा 12 – अधनर्ायव अधिकार:
अपनी पैतक विरासत का पता लगाने का अवधकार सभी भारतीयों ृ को प्राप्त होगा, जो अवधक जानकारीपणव ू
और समद्ध भविष्ट्य के वलए इसके महत्ि पर जोर देगा। ृ
अध्याय IV – एआई प्रौद्योधगकी के माध्यम र्े 25 पीध़ियों तक र्ंशार्ली मानधचत्रण
िारा 13 – एआई के माध्यम र्े पूर्वजों का मानधचत्रण:
एयएम प्लेटफॉमव ू 25पीवढयों तक प्रत्येक व्यवक्त के पूिवजों को मैप करने के वलए उन्नत एआई तकनीक का
उपयोग करेगा।
िारा 14 – िहुिार्ी र्ूचना:
जानकारी 21 भारतीय भार्ाओ में उपलदध होगी ं , और भार्ा-पहचान तकनीक यह सुवनवित करेगी वक
उपयोगकतावओ को उनकी पस ं ंदीदा भार्ा में जानकारी प्राप्त हो।
िारा 15 – पारंपररक ज्ञान र्ंप्रेधर्त करना:
पारंपररक ज्ञान और भारतीय ज्ञान परंपराओ को प्रौद्योवगकी के माध्यम से स ं ंप्रेवर्त और एयएम ू सोशल
मीविया प्लेटफॉमव के माध्यम से आपस में आदान प्रदान वकया जाएगा, वजससे उपयोगकतावओ को अपने ं
पिवजों के साथ िास्तविक और गहरा स ू ंबंध वमलेगा।
िारा 16 – यथाथवर्ादी र्चार ं :
पिवजों का यथाथविादी प्रवतवनवधत्ि बनाने के वलए उन्नत छवि और आिाज क्लोवन ू ंग तकनीक का उपयोग
वकया जाएगा।
उपयोगकताव इन संचार तकनीक के साथ अपनी भार्ा में बातचीत करने में सिम होंगे।
िारा 17 – िारतीय प्रगधत का प्रदशवन:
इस पहल का उद्देश्य यह प्रदवशवत करना है वक भले ही अन्यत्र सभ्यताएँ विकवसत नहीं हुई हों, लेवकन
भारतीय पिवजों का ज्ञान और ू व्यापार उन्नत रहा है वजससे ितवमान पीढी अपने पिवजों पर गौरिावन्ित हो ू
सके तथा पिवजों की कायव शैली को अपना कर भारत को परम िैभि की ओर ले जाए ू ।
अध्याय V – पूर्वजों के अतीत र्े र्तवमान पी़िी की आिुधनकता का मानधचत्रण
िारा 18 – तकनीकी प्रगधत का धचत्रण:
एयएम प्लेटफॉमव प्रौद्योवगकी के िेत्र में भारत की प्रगवत को दशावएगा ू , वजसमें जीिन जीने में आसानी,
व्यापार करने में आसानी और शासन में सबका साथ, सबका प्रयास, सबका विकास और सबका विश्वास
जैसे राष्ट्रीय पहलओु पर ध्यान कें वित वकया जाएगा। ं
िारा 19 – र्ेर्ाओ का एकीकरण: ं
आधार, विजीलॉकर, ई-संजीिनी, भावर्नी, यपीआई ू , दीिा और ओएनिीसी जैसी सेिाएं एयएम प्लेटफॉमव ू
से जड़ी होंगी। ु
िारा 20 – आिार्ी र्ास्तधर्कता प्रस्तुधत:
अतीत से ितवमान तक भारत की पररितवन यात्रा को विवजटल दृश्य रूप से प्रस्तुत करने के वलए िचवअल ु
ररयवलटी तकनीक का उपयोग वकया जाएगा।
अध्याय VI – ‘एयूएम-एआई’ आत्मधनिवरता के हर प्रश्न का उत्तर देगा
िारा 21 – युर्ा प्रश्न-उत्तर:
भारतीय यिा जीिन की समस्याओ ु , ं रोजगार या उद्यवमता से संबंवधत प्रश्न पछ सकते हैं ू , समाधान सझा ु
सकते हैं और उसपर अमल कर सकते हैं।
िारा 22 – एआई-र्ंचाधलत उत्तर:
कृवत्रम बवद्धमिा उपकरण आजीविका ु , वशिा, दशवन, विज्ञान, प्रौद्योवगकी और उद्यवमता से संबंवधत व्यापक
उिर परंपरागत ज्ञान परंपरा के आधार पर प्रदान करेगा तथा उसमें यिाओु के स ं झाि को ु मशीन-लवनिंग के
माध्यम से सामान्य चेतन विकवसत वकया जाएगा।
िारा 23 – िारतीय यर्ाओु के धलए मागवदशवन: ं
‘एयएमू -एआई’ का उद्देश्य भारतीय युिाओ को उनकी रुवचयों और िमताओ ं के आधार पर उद्यमी बनने ं
के वलए परंपरागत भारतीय शैली में मागवदशवन करना है।
अध्याय VII – पैतृक ज्ञान दस्तार्ेजीकरण: िारत के इधतहार् के 5 हजार र्र्व
िारा 24 – प्राचीन र्भ्यताएाँ:
वसंध घाटी सभ्यता ु , िैवदक काल और अन्य जैसी प्राचीन भारतीय सभ्यताओ के योगदान की खोज ं करना
साथ ही उन परंपरा एिं सभ्यताओ के विवशष्ठ ग ं णों को अपनाना ु ।
िारा 25 – पूजा पद्धधत और दाशवधनक परंपराओ:ं
सनातन पजा पद्धवत ू , बौद्ध पजा पद्धवत ू , जैन पजा पद्धवत ू , वसख पजा पद्धवत, ईसाई प ू जा ू पद्धवत, इस्लावमक
पजा पद्धवत ू और अन्य पूजा पद्धवत और दाशववनक परंपराओ के विकास का दस्तािेजीकरण करना ं एिं
उनकी िैज्ञावनक मल्यों को सिवसाधारण में अपनाना ू ।
िारा 26 – ऐधतहाधर्क घटनाएाँ:
भारतीय सम्राटों के शासनकाल, भारतीय स्ितंत्रता संग्राम और महापरुर्ों ु की गौरिशाली गाथाएं एिं
महत्िपणव ऐवतहावसक घटनाओ ू ंकेवििरण को सिवसाधारण में अपनाना।
िारा 27 – र्ांस्कृधतक धर्रार्त:
कला, संगीत, नत्यृ , सावहत्य और िास्तकला सवहत भारत की सा ु ंस्कृवतक विरासत का पारंपररक महत्ि के
साथ संरिण करना।
िारा 28 – र्ैज्ञाधनक और तकनीकी प्रगधत:
विज्ञान, गवणत, खगोल विज्ञान, वचवकत्सा और अन्य िेत्रों में भारत के पिवजों, ऋवर् म ू वनयों, साध ु सु ंतों के
अनसुंधान तथा िवणवत शास्त्रों के योगदान पर प्रकाश िालना।
िारा 29 – र्ामाधजक और राजनीधतक आंदोलन:
स्ितंत्रता संग्राम और सामावजक सधार आ ु ंदोलनों सवहत आधवनक भारत को आकार देने िाले सामावजक ु
और राजनीवतक आंदोलनों का दस्तािेजीकरण करना।
िारा 30 – िेत्रीय र्ाम्राज्य और राजर्ंश:
भारत के इवतहास में मौजद विवभन्न िेत्रीय साम्राज्यों और राजि ू ंशों के इवतहास की खोज करना और
दस्तािेजीकरण करना।
िारा 31 – िार्ा और र्ाधहत्य:
प्राचीन संस्कृत ग्रंथों से लेकर आधुवनक भारतीय सावहत्य तक, भारत में भार्ाओ और सावहत्य की ं
विविधता की खोज करना और दस्तािेजीकरण करना।
िारा 32 – र्ांस्कृधतक धर्धर्िता:
भारत की सांस्कृवतक विविधता और विवभन्न संस्कृवतयों, भार्ाओ और ं परंपराओ के सह ं -अवस्तत्ि को
पहचानना, खोज करना और दस्तािेजीकरण करना।
िारा 33 – अनुर्ंिान की पहल:
(ए) प्राचीन भारत के इवतहासलेखन के वलए अनसुंधान पररयोजनाओ का स ं ंचालन करना।
(बी) लोक भारत के प्राचीन अतीत की वकंिदंवतयों के पनवनवमावण के वलए ऐवतहावसक ु ग्रंथों, कलाकृवतयों
और मौवखक परंपराओंका दस्तािेजीकरण एिं इसे आधवनक जीिन शैली में अपनाना ु ।
िारा 34 – ऐधतहाधर्क अधिलेखों का र्ंरिण एर्ं अनुर्ंिान:
(ए) यह खंि ऐवतहावसक पांिुवलवपयों, दस्तािेजों और वशलालेखों के संरिण, महत्ि तथा एयएम सोशल ू
मीविया प्लेटफॉमव पर महत्ि एिं संबंवधत जानकारी साझा करने पर जोर देता है।
(बी) विवजटल संग्रह और पनस्थावपना प्रयास यह स ु वनवित करते हैं वक ये ररकॉिव भविष्ट्य की पीवढयों के ु
वलए बने रहें।
अध्याय VIII – एक पृ्र्ी, एक पररर्ार, एक िधर्ष्य
िारा 35- र्र्ुिैर् कुटुंिकम:्
शदद “िसधैि क ु ुटुंबकम” प्राचीन भारतीय ग्रंथों का एक संस्कृत िाक्यांश है, और इसका वहन्दी में अनिाद ु
“एक प्िी ृ , एक पररिार, एक भविष्ट्य” है। यह अिधारणा इस विचार का प्रतीक है वक परी द ू वनया एक ही ु
पररिार की तरह है, और इसके सभी वनिासी परस्पर जड़े ह ु ुए और अन्योन्यावश्रत हैं। यह भौगोवलक,
सांस्कृवतक और सीमाओ से परे एकता ं , सहयोग और िैवश्वक समदाय की भािना के महत्ि पर जोर देता है। ु
अवनिायव रूप से, यह एक विश्वदृविकोण को बढािा देता है जो लोगों को प्िी ृ और उसके वनिावसयों की
भलाई के वलए एक-दसरे के साथ सम्मान ू , करुणा और साझा वजम्मेदारी की भािना के साथ व्यिहार करने
के वलए प्रोत्सावहत करता है।
अध्याय IX – राष्रीय पैतृक प्रज्ञान आयोग
िारा 36- राष्रीय पैतृक प्रज्ञान आयोग की स्थापना:
(ए) राष्ट्रीय पैतक ृ प्रज्ञान आयोग (एनसीएिदल्य) की स्थापना की जाएगी ू , वजसमें भारत सरकार द्वारा वनयक्त ु
सदस्य शावमल होंगे। आयोग के अध्यि, सदस्य, सदस्य सवचि, प्रसासवनक अवधकारी, अनसुंधान
अवधकारी की वनयवक्त अवधवनयम के अ ु ंतगवत वनधावररत चयन सवमवत के द्वारा भारत सरकार को वसफाररस
की जाएगी तदनसार भारत सरकार वनय ु ुवक्त करेगा ।
(बी) एनसीएिदल्य एय ू एम और उससे स ू ंबंवधत गवतविवधयों के प्रबंधन और प्रशासन की देखरेख करेगा।
िारा 37- एनर्ीएडब्ल्यू के कायव:
एनसीएिदल्य के वनम्नवलवखत कायव होंगे: ू
(ए) एयएम के स ू ंचालन के वलए नीवतयां और वदशावनदेश तैयार करना।
(बी) पैतक ज्ञान के अन ृ सुंधान, दस्तािेजीकरण और प्रसार की सविधा प्रदान करना। ु
(सी) पैतक प्रथाओ ृ को बढािा देने के वलए प्रास ं ंवगक संस्थानों और संगठनों के साथ सहयोग करना।
(िी) एयएम के भीतर िेटा की स ू रिा और गोपनीयता स ु वनवित करना। ु
(ई) एयएम की प्रगवत और प्रभाि पर भारत सरकार को ररपोटव करना। ू
(एफ) भारत के नागररकों के पिवजों की जानकारी से राष्ट्र की स ू मवत, एकता, अख ु ंिता हेत अन्य जो भी ु
कायव हो उसे सवनवित करना । ु
अध्याय X – पैतृक प्रज्ञान का एकीकरण
िारा 38- आिधनक स्र्ास््य देखिाल में एकीकरण: ु
समग्र वचवकत्सा परंपराओ के म ं ल्य को ू पहचानते हुए, स्िास््य देखभाल संस्थान मान्यता प्राप्त पारंपररक
वचवकत्सकों के साथ समन्िय में, पैतक वचवकत्सा पद्धवतयों ृ की िैज्ञावनक पहलू तथा उसका निाचार के
आयामों का पता लगाएंगे।
िारा 39- र्ास्तुकला और आर्ार् धनयोजन में एकीकरण:
ग्राम पंचायत, नगरपावलका और शहरी प्रावधकरण के साथ-साथ आिास वनमावण में पैतक िास्त ृ वशल्प ज्ञान ु
से प्रेरणा लेते हुए वटकाऊ और सांस्कृवतक रूप से संिेदनशील विजाइन के वसद्धांतों पर विचार करना।
िारा 40– लोककथा के माध्यम र्े एकीकरण:
आधवनक माध्यमों से पैत ु क कहावनयों और मौवखक पर ृ ंपराओ को ं एयएम सोशल मीविया प्लेटफॉमव पर ू
साझा करने को बढािा देती है।
िारा 41- पैतृक र्मकालीन शार्न प्रथाओंका र्ाझाकरण:
पारंपररक विरासत, नैवतकता, पारदवशवता, जिाबदेही और अखंिता को एयएम सोशल मीविया ू प्लेटफॉमव
पर साझा करने को बढािा देती है।
अध्याय XI – पैतृक स्र्ास््य, आनुर्ंधशक रोगों का इधतहार् और क्याण
िारा 42- आनुर्ंधशक रोग और क्याण:
(ए) आनिुंवशक विविधता के संरिण पर ध्यान देने के साथ आनिुंवशक रोगों से संबंवधत अनसुंधान,
जागरूकता, पैतक ृ संस्कृवतयों में पाए जाने िाले स्िास््य देखभाल ज्ञान के प्राचीन पारंपररक वचवकत्सा,
स्िदेशी उपचार पद्धवतयों में सवन्नवहत स्िास््य के प्रवत समग्र दृविकोण को मान्यता देता है। आधवनक ु
स्िास््य देखभाल में पैतक ज्ञान के एकीकरण को बढािा देकर ृ , इस अध्याय का उद्देश्य व्यवक्तयों और राष्ट्र
के मानवसक और शारीररक कल्याण का पोर्ण करना है।
(बी) आनिा ु ंवशक बीमाररयों के ऐवतहावसक संदभव में गहराई से उतरते हुए, िंशानगत स्िास््य वस्थवतयों के ु
साथ हमारे पैतक अन ृ भिों को स्िीकार करने के महत्ि पर जोर देता है। अन ु ुसंधान और जागरूकता
अवभयानों का समथवन करके, यह आनिा ु ंवशक बीमाररयों का समाधान करना, आनिुंवशक विविधता को
बढािा देना और भािी पीवढयों के स्िास््य और जीिन शवक्त को सवनवित करना है। ु
(सी) दैवनक जीिन में पैतक कल्याण प्रथाओ ृ को अपनाने के महत्ि पर जोर देता है। नागररकों को अपनी ं
वदनचयाव में योग, ध्यान और सचेतनता को शावमल करने के वलए प्रोत्सावहत करतेहुए, यह एक ऐसे राष्ट्र
की कल्पना करता है जहां समय-परीिवणत प्रथाओ के माध्यम से मानवसक और शारीररक कल्याण का ं
पोर्ण वकया जाता है।
अध्याय XII – प्रर्ेश का अधिकार
िारा 43- प्रर्ेश का अधिकार:
प्रत्येक नागररक को एयएम प्लेटफॉमव के माध्यम से अपने पैत ू क ि ृ ंश को जानने एिंरोशन करने का अवधकार
है।
िारा 44–ईमेल र्े पंजीयन:
एयएम सोशल मीविया प्लेटफामव से ज ु ड़ुने हेतुवकसी भी प्रकार की कोई टोकन प्रोसेवसंग शल्क की ु
आिश्यकता नहीं होगी के िल ईमेल से पंजीयन कराकर इस सोशल मीविया का सदस्य बना जा सके गा।
अध्याय XIII – पैतृक धर्रार्त र्चना का र् ू ंरिण और र्म्मान
िारा 45- र्ूचना का र्रिण: ं
संस्कृवत मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन समस्त पैतक विरासत की जानकारी स ृ ंरवित रहेगी। विरासत से
संबंवधत संस्थानों के साथ सहयोग को सवनवित ु वकया जा है।
िारा 46- गोपनीयता:
पैतक विरासत की जानकारी ृ एयएम सोशल मीविया प्लेटफॉमव पर भारत के नागररकों द्वारा साझा वकया जा ू
सके गा परंत इसकी गोपनीयता भी बनाई जाएगी तावक इसका अनवधक ु ृत उपयोग से बचाया जा सकें ।
अध्याय XIV – र्ार्वजधनक पहुाँच (आउटरीच)
िारा 47- र्ार्वजधनक पहुाँच :
एयएम सोशल मीविया प्लेटफामव पर भारत के नागररकों की सािवजवनक पह ु ुँच होगी ।
अध्याय XV – र्ंशार्ली धर्शेर्ज्ञों के र्ाथ र्हयोग
िारा 48- र्ंशार्ली धर्शेर्ज्ञों के र्ाथ र्हयोग:
िंशािली विशेर्ज्ञों और विरासत विद्वानों के साथ सहयोग एिं लेखन में योगदान वलया जा सके गा।
अध्याय XVI – धशिा के माध्यम र्े युर्ाओ को प्रोत्र्ाधहत ं करना
िारा 49- शैधिक पाठ्यक्रम मेंपारंपररक ज्ञान का र्ंयोजन:
पैतक ज्ञान ृ को शैविक पाठ्यक्रम में संयोजन कर भािी पीवढयों को पहचान बताना ।
अध्याय XVII – राष्रीय एकता को ि़िार्ा देना
िारा 50- राष्रीय एकता को ि़िार्ा देना:
एयएम प्लेटफामव ू पर भारतीयों को समान पूिवजों के िंशज एिंसाझा जड़ होने के त्य को अिगत कराकर
हम सभी भारतीय एक हैं की भािना को सदृढ कराना ु ।
अध्याय XVIII – अधतररक्त र्ंर्ािन
िारा 51- र्मथवन जुटाना:
भारत के सामावजक संस्थानों, संत महात्माओ के आश्रमों, एि ं ं समिैचाररक संस्थानों से साझेदारी करके
समथवन जटाना । ु
िारा 52- क्राउडर्ोधर्िंग प्रोत्र्ाहन:
एयएम प्लेटफॉमव में ू भारत के नागररकों को प्रोत्सावहत करके उनके पिवजों की िाटा शेयरर ू ंग में योगदान को
मान्य करना।
अध्याय XIX – मेटार्र्व पुनरुथान (अर्ेकधनंग)
िारा 53- आिार्ी आह्वान:
आभासी और संिवधवत िास्तविकता को अपनाते हुए, एयएम प्लेटफॉमव में व्यापक अन ू भिों ु एिं पिवजों ू के
साथ पैतक पररदृश्यों ृ का आह्वान करना सवम्मवलत रहेगा।
िारा 54- मेटार्र्व र्ाझेदारी:
एयएम प्लेटफॉमव िच ू वअल ररयवलटी और प्रौद्योवगकी एकीकरण ु के माध्यम से भारत के नागररकों को पिवजों ू
की िास्तविकता से जोड़कर संयक्त पररिार की दृविकोण को मजब ु त करेगा ू ।
अध्याय XX – धर्रार्त को कायम रखना
िारा 55–धर्रार्त की धनरंतरता:
एयएम सा ू ंस्कृवतक विरासतों को बनाए रखने में पररिार और समदाय की भागीदारी को बढािा देता है। ु
नागररकों को अपनी विरासत को जीवित विरासत के रूप में अपनाने के वलए सशक्त बनाती है।
अध्याय XXI – पैतृक कथा को र्मृद्ध करना
िारा 56- पैतृक आख्यान: व्यधक्तगत कहाधनयााँ र्ंग्रधहत करना:
एयएम प्लेटफॉमव नागररकों को व्यवक्तगत पैत ू क कथाओ ृ और कहावनयों को स ं ंग्रहीत करने के वलए
प्रोत्सावहत करता है। व्यवक्तगत कहावनयाँ देश के समद्ध इवतहास की गिाही देती हैं। ृ
अध्याय XXII – पैतृक स्थलों का र्ंर्िवन एर्ं र्ंरिण
िारा 57– पूर्वजों की जन्मिूधम की पहचान – पैतृक पयवटन र्ंर्िवन:
(ए) एयएम प्लेटफॉमव ू पैतक पयवटन को बढािा देने के वलए स ृ ंबंवधत वनकायों के साथ सहयोग करता है।
एयएम प्लेटफॉमव से ू पैतक पयवटन को स ृ ुलभ और समद्ध ृ बनाना।
(बी) पैतक स्थलों को स ृ ंरवित करने के वलए पराने ररश्तेदारों की पहचान ु के साथ संरिण और कुटुंब प्रबोधन
सवनवित ु करना।
अध्याय XXIII – अंतरराष्रीय र्हयोग
िारा 58- र्ीमाएाँ पाटना और अंतरराष्रीय र्हयोग:
यह धारा एयएम प्लेटफॉमव पर कई अन्य देश के नागररकों को अपने प ू िवजों की पहचान करने तथा प ू िवजों ू
की विरासत को जानने के वलए सदस्य बनाने की अनुमवत देता है ।
अध्याय XXIV – र्ंक्रमणकालीन धर्र्य
िारा 59- र्ंक्रमणकालीन धर्र्य:
एयएम प्लेटफॉमव पर ू आक्रमणकाल खंि में भारत के नागररकों पर हुए अत्याचार को चलवचत्रण और अन्य
माध्यमों से संरवित करने का अवधकार प्रदान करता हैं।
अध्याय XXV – राष्रीय पूर्वज धदर्र्
िारा 60- राष्रीय पर्वज धदर्र्: ू
यह खंि हमारे पूिवजों के प्रवत श्रद्धा के वदन के रूप में “राष्ट्रीय पूिवज वदिस” की स्थापना करता है।नागररकों
को समारोहों, पाररिाररक समारोहों और विरासत की खोज के माध्यम से अपनी पैतक जड़ों से ज ृ ड़ने के ु
वलए प्रोत्सावहत करता है।
अध्याय XXVI – एक िारत – श्रेष्ठ िारत राष्रीय महोत्र्र्
िारा 61- धर्धर्िता में एकता का स्मरणोत्र्र्:
“एक भारत – श्रेष्ठ भारत राष्ट्रीय महोत्सि” भारत की सांस्कृवतक विविधता और एकता का उत्सि मनाने
को प्रेररत करता है। महोत्सि में विवभन्न राज्यों की सांस्कृवतक प्रदशववनयाँ, प्रदशवन और कला प्रदशवन शावमल
हैं।
अध्याय XXVII – युर्ाओ में “स्र्” की ं िार्ना का जागरण और आत्मधनिवर िारत
िारा 62- आत्मधनिवरता का पोर्ण:
पिवजों की भा ू ंवत यिाओु में आत्मवनभवरता पैदा करने के वलए परामशव के अिसर शावमल ं करता हैं।
िारा 63–स्र् को प्रोत्र्ाधहत करना:
यिाओु को राष्ट्र वनमावण में सवक्रय रूप से भाग लेने के वलए ं स्ि की भािना को प्रेररत करता हैं।
अध्याय XXVIII: पूर्वजों के नाम और एयूएम र्ोशल मीधडया प्लेटफॉमव की प्रधर्धि
िारा 64- र्ार्वजधनक पैतृक डेटािेर्:
नागररकों को सािवजवनक पैतक िेटाबेस में ृ स्िेच्छा से अपने पूिवजों के नाम दजव करने की अनमवत देता है। ु
िारा 65- एयूएम र्ोशल मीधडया प्लेटफॉमव:
एयएम सोशल मीविया प्लेटफॉमव ू की स्थापना और नागररकों के बीच उनकी साझा पैतक विरासत के आधार ृ
पर सामावजक कनेवक्टविटी के वलए विजाइन वकया जाएगा। उपयोगकताव अपनेपन और एकता की भािना
को बढािा देते हुए सांस्कृवतक और विरासत से संबंवधत जानकारी साझा कर सकते हैं और सहयोग कर
सकते हैं।
अध्याय XXIX – पैतृक नर्ाचार और तकनीकी प्रगधत
िारा 66- अतीत और िधर्ष्य को पाटना:
यह खंि पैतक निाचारों को समकालीन प्रौद्योवगकी से जोड़ने के महत्ि को स्थावपत करता है। यह च ृ नौवतयों ु
के वलए सरल समाधान विकवसत करने में हमारे पूिवजों की भवमका पर जोर देता है और कै से ये निाचार ू
ितवमान और भविष्ट्य की तकनीकी प्रगवत को प्रेररत कर सकते हैं।
िारा 67- अतीत र्े र्िक:
यह खंि प्राचीन प्रौद्योवगवकयों और निाचारों के विवशि उदाहरणों की पड़ताल करता है वजन्होंने आधवनक ु
समाज को प्रभावित वकया है। यह इस बात पर प्रकाश िालता है वक कै से पीवढयों से चले आ रहे ज्ञान ने
कृवर् से लेकर िास्तकला तक विवभन्न िेत्रों में प्रगवत का मागव ु प्रशस्त वकया है।
िारा 68- नर्ाचार को प्रोत्र्ाधहत करना:
यह खंि पैतक ज्ञान से प्रेररत निाचार को प्रोत्सावहत करने की पहल पर चचाव करता है। इसमें अन ृ सुंधान
अनदानु , प्रौद्योवगकी संस्थानों के साथ साझेदारी और हमारी विरासत से प्रेरणा लेने िाले उद्यवमयों के वलए
प्रोत्साहन के प्रािधान शावमल हो सकते हैं।
अध्याय XXX – पैतृक कला और रचनात्मकता को जीर्ंत रखना
िारा 69- रचनात्मकता की कुशलता:
दृश्य कला, संगीत, नत्य और सावहत्य सवहत हमारे प ृ िवजों की सम ू द्ध कलात्मक पर ृ ंपराओ के प्रमाण के रूप ं
में इन रचनात्मक अवभव्यवक्तयों को संरवित करने और बढािा देने के महत्ि पर जोर देता है।
िारा 70- र्ांस्कृधतक उत्र्र् और प्रदशवधनयााँ:
सांस्कृवतक उत्सिों और प्रदशववनयों के आयोजन, पैतक कला और रचनात्मकता को प्रदवशवत ृ करनेको
बढािा देता है।
अध्याय XXXI – पैतृक कृधर् पद्धधतयााँ और धटकाऊ खेती
िारा 71- प्राचीन कृधर् तकनीकों का पता लगाना:
भारत केपूिवजों द्वारा अपनाई गई सरल कृवर् विवधयों को वफर से खोजने, सीढीदार खेती, फसल चक्र जैसी
प्रथाओ और ं पारंपररक तकनीकों को अपनाने एिं समकालीन पाररवस्थवतक चनौवतयों का समाधान कर ु
उन्नत कृवर् करने में पारंपररक कृवर् पद्धवत को सवम्मवलत करने पर बढािा देताहै। वकसानों को जैविक कृवर्
अपनाने, स्िस्थगत दृविकोण के अनसार ु उपज लेने, विरासत फसल के संरिण, देशी बीजों के संरिण और
वटकाऊ कृवर् पद्धवतयों को बढािा देता है।
अध्याय XXXII – पैतृक व्यापार और र्ाधणज्य
िारा 72- प्राचीन व्यापार के मागों का पता लगाना:
भारत के पिवजों के व्यापार मागों ू , समिी अवभयानों और िावणज्य प्रथाओ ु का पता लगाते ह ं ुए एक मनोरम
ऐवतहावसक यात्रा, आवथवक आदान-प्रदान में व्यापाररयों, खोजकतावओ और उद्यवमयों के उल्लेखनीय ं
योगदान की पहचान करना।
िारा 73- आिधनक अथवशास्त्र के धलए प्राचीन व्यापार र्े र्िक: ु
आधवनक आवथवक नीवतयों को सम ु द्ध करने के वलए प्राचीन व्यापार प्रथाओ ृ से ं मल्यिान ू , ऐवतहावसक
अंतदृववि का लाभ उठाने, मजबत अू ंतरावष्ट्रीय व्यापार संबंधों और आवथवक विकास को बढािा देने के वलए
रणनीवतयों का प्रस्ताि करता है। हमारे पूिवजों के ज्ञान को अपनाकर, राष्ट्र की आवथवक नींि को मजबत ू
करना है।
िारा 74- उद्यधमता और छोटे व्यर्र्ायों को ि़िार्ा देना:
हमारे पूिवजों की िावणज्य प्रथाओ से प्रेररत उद्यमशीलता की भािना और छोटे व्यिसायों के विकास को ं
प्रोत्सावहत करता है। यह स्टाटवअप और सक्ष्म उद्यमों को सशक्त बनाने ू , आवथवक विविधता और निाचार
को बढािा देने के वलए नीवतयां और पहल पेश कर सकता है। ऐसा करते हुए, यह राष्ट्र के वलए एक जीिंत
और लचीले आवथवक पररदृश्य की कल्पना करता है।
अध्याय XXXIII – पैतक पयावर्रण प्रि ृ ंिन
िारा 75- स्र्देशी पाररधस्थधतक प्रथाएाँ:
भारत के विवभन्न िेत्रों की विविध स्िदेशी पाररवस्थवतक प्रथाओ पर प्रकाश ं , पीवढयों से अपने पयाविरण के
साथ सामंजस्य वबठाए जाने का ज्ञान को आधवनक पयाविरण प्रब ु ंधन के वलए मागवदशवक के रूप में अपनाना
हैं।
िारा 76- पयावर्रण-अनुकूल जीर्न शैली र्ंर्िवन:
पैतक ज्ञान में वनवहत पयाविरण ृ -अनकुूल जीिन शैली को बढािा देने की वदशा में हैं। एकल-उपयोग
प्लावस्टक को कम करने से लेकर निीकरणीय ऊजाव स्रोतों को अपनाने तक, हमारे दैवनक जीिन में वटकाऊ
प्रथाओ को प्रोत्सावहत करने की पहल का पररचय देता है। हमारे पाररवस्थवतक पदवचि को कम करने और ं
पयाविरण की सरिा के वलए साम ु वहक प्रवतबद्धता को प्रेररत करता है। ू
िारा 77– प्राकृधतक स्थलों का र्ंरिण:
प्राकृवतक स्थलों के गहन सांस्कृवतक और आध्यावत्मक महत्ि को पहचान करना और संरिण की
आिश्यकता पर प्रकाश िालता है, यह सवनवित करते ह ु ुए वक आधवनक विकास से अछ ु ूते रहें। इन स्थलों
की सरिा करके ु , न के िल अपनी विरासत को संरवित करना बवल्क भूवम से अपने संबंध को भी संरवित
करना हैं।
अध्याय XXXIV – पैतक िार्ा प ृ ुनरुद्धार और र्ंरिण
िारा 78– पूर्वजों की लप्तप्राय िार्ाओ ु का दस्तार्ेजीकरण: ं
लप्तप्राय भार्ाओ ु का दस्तािेजीकरण करने और उन्हें प ं नजीवित करने के वलए ु , भार्ाविदों और सांस्कृवतक
विद्वानों, मौवखक परंपराओ, ं बोवलयों और भार्ाई बारीवकयों को एयएम प्लेटफॉमव पर ू ररकॉिव करनाहैं। इन
प्रयासों के माध्यम से, विलुप्त होने के कगार पर मौजदू पिवजों की ू भार्ाओंका संरिण और भािी पीवढयों
के वलए भार्ाई ज्ञान को संरवित करना है।
अध्याय XXXV – पैतृक खेल और शारीररक र्ंस्कृधत
िारा 79- पारंपररक खेलों को ि़िार्ा देना:
पारंपररक खेलों, शारीररक गवतविवधयां के माध्यम सेशारीररक संस्कृवत को पनजीवित ु करनाहैं।
िारा 80- योग और ध्यान के माध्यम र्े क्याण:
योग और ध्यान के माध्यम से समग्र कल्याण, पिवजों के ज्ञान ू से शारीररक और मानवसक स्िास््य को
संतवलत और साम ु ंजस्यपणव ू जीिन जीनेको बढािा देता हैं।
अध्याय XXXVVI – कानूनी ढााँचा
िारा 81 – कानूनी मान्यता:
इस अवधवनयम के तहत मान्यता प्राप्त पैतक प्रथाओ ृ को कान ं ूनी प्रवतष्ठा और सुरिा वमलेगी। पैतक प्रथाओ ृ ं
को बढािा देने या संरवित करने िाला कोई भी व्यवक्त या संस्था कें ि सरकार द्वारा वनधावररत लाभ और
प्रोत्साहन का हकदार होगा।
िारा 82 – फंधडंग और र्र्ािन: ं
(ए) कें ि सरकार एयएम की स्थापना और रखरखाि और पररर्द की गवतविवधयों के वलए आिश्यक धन ू
और संसाधन आिंवटत करेगी।
(बी) राज्य सरकारें भी अपने अवधकार िेत्र में पैतक प्रथाओ ृ को ं बढािा देने के वलए धन आिंवटत कर
सकती हैं।
अध्याय XXXVII – र्शार्ली धर्शेर्ज्ञों के र्ाथ र्हयोग ं
िारा 83 – र्ंशार्ली धर्शेर्ज्ञों के र्ाथ र्हयोग:
(ए) िंशािली विशेर्ज्ञों और विरासत विद्वानों के साथ सहयोग का जश्न मनाया जाता है।
(बी) िे इस भव्य आख्यान में योगदान करते हैं।
अध्याय XXXVIII- धर्धर्ि
िारा 84- फंधडंग:
भारत सरकार एयएम की स्थापना और रखरखाि और एनसीएिदल्य ू की गवतविवधयों के वलए पयावप्त ू
धनरावश आिंवटत करेगी।
िारा 85- अपराि और दड: ं
इस अवधवनयम के प्रािधानों का कोई भी उल्लंघन प्रासंवगक कानूनों के तहत वनधावररत दि के अधीन होगा। ं
िारा 86- धनयम िनाने की शधक्त:
कें ि सरकार इस अवधवनयम के प्रािधानों को लाग करने के वलए वनयम बना सकती है। ू
अध्याय XXXVIV – धनरर्न और िचत
िारा 87- धपछले कानूनों का धनरर्न:
इस अवधवनयम के प्रािधानों के साथ असंगत वकसी भी वपछले कानन या विवनयम को इसके द्वारा वनरस्त ू
वकया जाता है।
िारा 88- िचत:
वपछले काननों के वनरस्त होने के बािज ू दू, वपछले काननों के तहत श ू रू की गई कोई भी कारविाई या ु
गवतविवधयां इस अवधवनयम के िांचे के तहत संचावलत की जाएंगी।
अध्याय XXXX – र्ाधर्वक धर्रार्त ररपोटव
िारा 89- र्ाधर्वक धर्रार्त ररपोटव:
एक िावर्वक विरासत ररपोटव तैयार और प्रकावशत करना और ररपोटव को सािवजवनक प्रवतवक्रया के वलए
आमंवत्रत करना।
अध्याय XXXXI – र्ंशोिन और िधर्ष्य के धनदेश
िारा 90- र्ंशोिन और िधर्ष्य के धनदेश:
(ए) संसद उभरती जरूरतों के अनरूप अवधवनयम में स ु ंशोधन कर सकती है।
(बी) एयएम प्रावधकरण प्लेटफॉमव प्रास ू ंवगकता के वलए भविष्ट्य के निाचारों की खोज करता है।
अध्याय XXXXII – प्रारंि और अधिधनयमन
िारा 91 – प्रारंि:
यह अवधवनयम उस तारीख से लागू होगा जो कें ि सरकार, आवधकाररक राजपत्र में अवधसचना द्वारा ू , वनयत
करेगी।
िारा 92 – अधिधनयमन:
यह अवधवनयम भारत की संसद द्वारा अवधवनयवमत वकया गया है।